यह बारिश और तुम - Deepak Salwan
 यह बारिश और तुम बहुत जलती होगी तेरी घनी ज़ुल्फ़ों से ,  जो आसमान में घटाएं उमड़ आती हैं,  तेरी मुस्कराहट का कोई जादू ही होगा,  जिसे देखने को बूँदें बरस जाती हैं,  तुम्हे अपनी गीली ज़ुल्फ़ें झटकते हुए देख लिया होगा,  सब्ज़ हो जाती है बहार और हर मंज़र धुल सा जाता है,  तुम्हें छूने को कितना तरसता होगा इस मौसम में,  जो चाय कुल्हड़ भी तुम्हारे हाथों में इतराता है,  तुम्हारी आवाज़ की सरगम ही होगी यह,  जिसे सुंनने को हर पत्ता बूंदों के साथ मल्हार गता है,  सोचो कितनी चाहत होगी इस बारिश को तेरे दीदार की ,  वरना  कौन आसमान से उतर के ज़मीन पे  मिलने आता  है 
 
 
 
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