सच और झूट
समझौता कर के मत चलियो
बात मेरी तू मान ले
सच की गागर को मत तजियो
गाँठ हृदय में बांध ले
पाखंड झूट का बड़ा सबल
आडंबर उसका है हसीन
उसके चुंगल में मत फँसियो
उस छलिया को पहचान ले
जहां झूठ झूम कर चलता हो
और सच कौने में काँपे थर थर
ऐसे जग में तू मत बसियो
मन में तू ये ठान ले
दुनिया का सच और तेरा सच
कई बार सिरों को खींचेगा
अपने सच से तू मत हटियो
संकल्प तू मन में आज ले
हो नर्म झूट और सक्थ हो सच
हो मीठा झूट पर कड़वा सच
सच की डगरी से मत हटिओ
इतना तू बस जान ले
तुझे झूट बताया झूठों ने
कुछ मूर्खों ने कुछ धूर्तों ने
उनके जैसा तू मत बनियो
इतनी बस तू ठान ले
नई फसल तो है कोमल
सच को ही सुन कर पनपेगी
सच ही इसको रास आएगा
करतव्य तू अपना जान ले
ग़र झूट उड़ेला रगों में उनकी
उसी अंधकार में जियेंगे वो
जिस से अब तक तू जूझा है
इतना तू बस जान ले
ये श्राप तू उस मर मत कसियो
ये पाप कभी तू मत करियो
समझौता कर के मत चलियो
बात मेरी तू मान ले
nice poem on sach
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद हिंदी में कोई कविता पढ़ रहा हूँ जो बहुत सुंदर है! Kudos अतुल! // Rakesh
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