सिरे
सौ सौ सिरे हैं ज़िंदगी के
पकड़ा एक तो छूटे दो
एक घड़ा सुख का भरा तो
मुसीबतों के फूटे दो
एक घर का सिरा, एक नौकरी का
प्यार का एक., एक दोस्ती का
पैसे का एक. एक समाज का
एक खयालों का, एक एहसास का
इसे पकड़ा तो वो फिसल गया
उसे सम्भाला तो ये निकल गया
घर परिवार, हारी, बीमारी,
यार, नौकरी, पैसा, यारी
कुछ आये पकड़ में कुछ छूटते हैं
कुछ तो जैसे रूठते हैं
इतना मनाओ तो हाथ आते हैं
और ध्यान बटा तो फिर फिसल जाते हैं
ऐसा ही है पैसों का सिरा
बहुत मिन्नतें करवाता है
जीवन भर परिश्रम करो
फिर भी कहाँ हाथ आता है
दोस्ती का सिरा और प्यार का
उलझा रहता है एहसासों में
ढूँढो तो मिल जाएगा
लेकिन अगर टूट जाये, तो फिर नहीं हाथ आयेगा
और हाथ भी कमबकथ हैं सिर्फ़ दो
और मिनटें सिर्फ़ चार
सब सिरों को पकड़ते संभलते
ज़िंदगी का सिरा, तो आख़िर फिसल ही जाता है!!
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