मंज़िल - Deepak Salwan

मंज़िल न तो मिली और ना ही मिलने का कोई सबब हुआ

क्या करते , मंज़िल से ना सही तो हमने राहों से प्यार कर लिया,


छु सकते थे उसे, मह्सूस भी किया पर पाने का कोई रास्ता नहीं था, 

क्या करते, नज़दीकियां ना मिली तो दूरियों से इकरार कर लिया, 


क़दमों ने भी वह राह चीनी के मंज़िल हमें ता उम्र तलाश करती रही, 

क्या कहते दिल को जब दिमाग ने मज़बूरियों का इज़हार कर लिया,


इतनी बिसात नहीं के दिल-ो-दिमाग की क़शमक़श में पड़ते हम, 

क्या करते, इस क़शमक़श को ख़त्म ना कर सके तो इसी से क़रार कर लिया, 


यह कोई ज़रूरी नहीं के दिल और ज़िन्दगी की मंज़िल एक ही हो, 

क्या करते, ज़िन्दगी ने अपना और दिल ने अपना रास्ता इख्तियार कर लिया , 


किसी का हासिल हो जाना ही नहीं इश्क़ की मंज़िल, हर सफ़ीने को किनारा नसीब नहीं, 

क्या करते, यही सोच के दिल को समझाया और आँखों को ज़ार ज़ार कर लिया

Comments

Popular posts from this blog

The Girl, The City and The Marathon - By Nayana Gadkari

Lioness - By Nayana Gadkari

Amma and I: A tale of family traditions