गुफ्तगू - अतुल सिंह
कल ज़िंदगी से बात हुई
मैंने कहा उस ने सुना
गुफ़्तगू सारी रात हुई
उसने कहा मैंने सुना
पूछ लिया मैंने उस से
ये आठ रंगों की चोली क्यूँ
सात तो भाते हैं सबको
फिर काला रंग संजोती क्यूँ
ना ग़ुस्सा हुई ना हैरान हुई
बड़े शांत भाव से बोली वो
काला रंग जो हटा लिया
तो सात भी भाएँगे क्या तुझको ?
दुःख की पीड़ा ना झेली जिसने
क्या सुख का उस ने सम्मान किया ?
भूके पेट ना सोया जो
भरी थाली क़ीमत वो जान सका ?
मैं हूँ ग़र तो तू है, फिर बोला मैं
है तो तू बस परछाई मेरी
फिर लगती इतनी भारी क्यूँ
फिर होती मुझ पर हावी क्यूँ
हूँ निर्भर तुझ पर, ये सच है
आँखों में देख की बोली वो
जिस रंग मैं तू रंगता है
वैसी ही हो जाती मैं
मेरा अपना अस्तित्व नहीं
मैं तेरी सोच की रचना हूँ
बन कर तेज या सलवट बन
मस्तक मैं तेरा सजाती हूँ
Beautiful words Atul!! - Deepak
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